हाल ही में राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम (RSRTC) booking सेवाएं प्रभावित हो गई हैं। उदयपुर-भीलवाड़ा रोडवेज डिपो की बुकिंग खिड़कियों पर ताले लगे हुए हैं, जिसके कारण यात्रियों को जनरल और आरक्षित टिकट प्राप्त करने में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति यात्रियों के लिए चिंता का कारण बन गई है, खासकर त्योहारों के मौसम में।
राजस्थान पथ परिवहन निगम ने इस मुद्दे पर उदयपुर डिपो के बाद भीलवाड़ा डिपो में भी बुकिंग खिड़कियां बंद कर दी हैं। निगम का कहना है कि कर्मचारियों की कमी के कारण उन्हें रूट पर भेजा जा रहा है, लेकिन इसका असर यात्रियों पर पड़ा है। अब राज्य के अन्य डिपो में भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे यात्रियों को परेशानी और बढ़ सकती है।
RSRTC booking विंडो बंद करने के कारण
भीलवाड़ा डिपो में तीन बुकिंग विंडो बंद हो चुकी हैं, जिससे श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, और बीकानेर मार्गों पर यात्रा करने वाले यात्रियों को मुश्किल हो रही है। कर्मचारी संगठन इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं और उनका मानना है कि यह निजीकरण की ओर बढ़ने की योजना का हिस्सा हो सकता है। उनका कहना है कि गुजरात की तर्ज पर राजस्थान में भी इस तरह के बदलाव किए जा सकते हैं, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा और यात्री परेशान होंगे।
यात्री परेशान, बुकिंग विंडो पर ताले
भीलवाड़ा डिपो में कुल पांच बुकिंग विंडो हैं, लेकिन वर्तमान में सभी खिड़कियां बंद हैं। आनन-फानन में दोपहर में एक विंडो खोली गई, लेकिन इसे भी शाम होते ही बंद कर दिया गया। इस दौरान, यात्री टिकट के लिए परेशान हो रहे थे और बसों में धक्का-मुक्की हो रही थी। यह स्थिति यात्रियों के लिए बेहद असुविधाजनक साबित हो रही है।
राजस्थान रोडवेज की स्थिति
राजस्थान रोडवेज पिछले एक दशक से नई भर्ती नहीं कर रहा है। 2013 से अब तक किसी भी नए कर्मचारी की भर्ती नहीं की गई है। रोडवेज में कर्मचारियों की कमी के कारण बुकिंग विंडो पर ताले लगाना पड़ा। कर्मचारी संगठन ने इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि इसका असर सिर्फ यात्रियों पर नहीं बल्कि कर्मचारियों पर भी पड़ेगा। हर साल सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है, जबकि बसों की संख्या में लगातार कमी आ रही है।
RSRTC booking पर संकट
हालात यह हैं कि न तो जनरल टिकट मिल रहे हैं, न ही आरक्षित टिकट। रोडवेज कर्मचारियों का मानना है कि इस तरह की स्थिति से यात्रियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए यह स्थिति और भी कठिन हो सकती है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यह निजीकरण की ओर एक कदम बढ़ाया गया है, जिससे निगम के कर्मचारियों में हड़कंप मचा हुआ है।